ज्ञानवापी से लेकर श्रीकृष्ण जन्मभूमि और कुतुब मीनार तक, जानें किस मामले में अब तक क्या-क्या हुआ
रायपुर: आज ज्ञानवापी मामले में वाराणसी कोर्ट का अहम फैसला आया है। कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज करते हुए कहा कि ज्ञानवापी का मसला सुनने लायक है। इस मामले में पूजा स्थल कानून 1991 नहीं लागू होता है। मामले में अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी।
ये तो ज्ञानवापी का मसला हो गया। इसके अलावा अभी देश में दो बड़े मुद्दे कोर्ट में लंबित हैं। पहला मथुरा का श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद और दूसरा दिल्ली का कुतुब मीनार विवाद। ज्ञानवापी समेत इन तीनों मामलों की सुनवाई अलग-अलग कोर्ट में चल रही है। अब तक इन तीनों मामलों में क्या-क्या हुआ और कब तक फैसला आने की उम्मीद है? आइये जानते हैं...
18 अगस्त 2021 को पांच महिलाओं ने ज्ञानवापी में स्थित शृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन और विग्रहों की सुरक्षा को लेकर याचिका दायर की। कोर्ट के आदेश पर 16 मई 2022 को ज्ञानवापी परिसर का सर्वे हुआ। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 23 मई 2022 से इस मामले में जिला कोर्ट में सुनवाई चल रही है।
मामले में न्यायालय इस बात पर सुनवाई कर रही थी कि आजादी के समय पूजा स्थल कानून ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले में लागू होता है या नहीं। अब कोर्ट ने हिंदू पक्ष में फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि ज्ञानवापी का मामला सुनवाई के लायक है। मतलब अब असल मायने की सुनवाई होगी। जिसमें ये तय होगा कि ज्ञानवापी परिसर हिंदू पक्ष का है या मुस्लिम?
मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर विवाद है। 13.37 एकड़ भूमि के स्वामित्व की मांग को लेकर मथुरा कोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिका में पूरी जमीन लेने और श्री कृष्ण जन्मभूमि के बराबर में बनी शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की गई है।
याचिकाकर्ता ने विवादित स्थल की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कराने की भी मांग की थी। निचली अदालत में ये मामला लंबित है। लगातार देरी होने के चलते याचिकाकर्ता मनीष यादव ने हाईकोर्ट का रूख किया। मनीष ने हाईकोर्ट में भी यही मांग की। इसके बाद कोर्ट ने निचली अदालत से आख्या मांगी। इसी मामले में हाईकोर्ट में 29 अगस्त को सुनवाई हुई। कोर्ट ने मंदिर पक्ष की ओर से निचली अदालत में दाखिल अर्जी पर चार महीने में सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया है।
अब इस मामले में विवाद को भी समझ लेते हैं। ऐसा कहा जाता है कि औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्म स्थली पर बने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को नष्ट करके उसी जगह 1669-70 में शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था। 1770 में गोवर्धन में मुगलों और मराठाओं में जंग हुई। इसमें मराठा जीते। जीत के बाद मराठाओं ने फिर से मंदिर का निर्माण कराया। 1935 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 13.37 एकड़ की भूमि बनारस के राजा कृष्ण दास को आवंटित कर दी। 1951 में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने ये भूमि अधिग्रहीत कर ली।
12 अक्तूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ एक समझौता किया। समझौते में 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों के बने रहने की बात है। पूरा विवाद इसी 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है।
इस जमीन में से 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। इस समझौते में मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और मुस्लिम पक्ष को बदले में पास में ही कुछ जगह दी गई थी। अब हिन्दू पक्ष पूरी 13.37 एकड़ जमीन पर कब्जे की मांग कर रहा है।
दिल्ली के कुतुब मीनार को लेकर भी विवाद जारी है। हिंदू संगठन ने याचिका दायर की है कि कुतुब मीनार को 27 हिंदू देवी-देवताओं और जैन मंदिरों को तोड़कर बनाया गया है। इसलिए इसमें पूजा करने की अनुमति दी जाए। इसे विष्णु स्तंभ बताया गया है। याचिका में मंदिर के जीर्णोद्वार की मांग की गई है। दिल्ली की साकेत कोर्ट में सुनवाई के दौरान दोनों ओर से बहस भी हो चुकी है। वहीं, एएसआई ने मंदिर होने के दावे को खारिज किया है। एएसआई के एडवोकेट सुभाष गुप्ता ने कहा था कि अदालत के आदेश से छेड़छाड़ का कोई आधार नहीं है।
इस मामले में पहले नौ जून फिर 24 अगस्त को फैसला आना था। हालांकि, इस बीच इसके मालिकाना हक को लेकर एक नई याचिका दायर हो गई है। ऐसे में कोर्ट ने कहा कि जब तक मालिकाना हक के मामले में अंतिम फैसला नहीं आ जाता, तब तक पूजा की अनुमति देने वाली याचिका पर फैसला नहीं दिया जा सकता है। मालिकाना हक वाली याचिका पर अब कल यानी 13 सितंबर को सुनवाई होनी है।