छत्तीसगढ़ के उभरते कलाकार की नई कविता! शीर्षक:आगे संगी कैसे ज़माना।।
छत्तीसगढ़ी कविता:: शीर्षक
। । *आ* *गे* *संगी* *कैसे* *ज़माना* ।।
1 आ गे संगी कैसे ज़माना
दुःख लागत हे एला बताना।
बेटा कैसे रोज दारू पीयत हे,
दाई ददा घुट-घुट के जीयत हे।
नारी के ओकर अंतस रोवत हे,
घर में झगड़ा रोज होवत हे।
बहु सास ल मारय ताना,
आ गे संगी कैसे ज़माना।
2 सब्बो के हाथ मोबाइल आ गे,
छोटे बड़े सब एमा भुलागे।
गेम एमा रंग रंग के चलत हे,
चिट्ठी पत्री नदाही लगत हे।
छोड़त हे लयका स्कूल जाना,
आ संगी कैसे ज़माना।
3 अब तो फेशन भारी बड़गे,
टूरी टूरा मुड़ बाप के चड़गे।
साड़ी सया ल बोहो भुलागे,
शूटशलवार म ओमन मोहागे ।
तड़क भड़क सब सुनय गाना,
आ गे संगी कैसे ज़माना।
4 पेट्रोल डीजल महंगा हो गे,
दिन हिन के किस्मत सो गे।
गरीब के पैसा अमीर खात हे,
बन के महात्मा तीरथ जात हे।
बस नेता कुर्सी के दीवाना,
आ गे संगी कैसे जमाना
लेखक/कवि
विजय कुमार कोसले
नाचनपाली, लेन्ध्रा छोटे
सारंगढ़ , छत्तीसगढ़ ।