कवि* *विजय कुमार कोसले ने* *ग्रामीण इलाकों के*सरकारी* *कामों में हों रहे** *धांधली को कविता के रूप देकर* *सरपंच** *सचिव का खेल बताया साथ ही* *शासन प्रशासन से इस पर* *कड़ी निगरानी की* *अपेक्षा जताया:
*शीर्षक - सरकारी काम व्यापारी* *दाम*
~शुरू होथे जब गांव - गांव म
सरकारी राहत के काम,
सरपंच सचिव रो.सहायक संग
इंजीनियर पाथे मोटा दाम।
~सरपंच महोदय जनपद जाके
गांव विकास म काम लाथे,
फिर सब जनता के हक मारके
फोकट म लाखों पैसा खाथे।
~इंजीनियर घलो काम पास करे ब
लाख रुपया के करथे सौदा ,
सरपंच जी के फिर राजी खुशी म
सब पाथे पैसा कमाए के मौका।
~पंच सरपंच संग सचिव सहायक
बड़ चढ़ के सब धरम निभाये,
जब एक सौ आदमी काम करे त
दू सौ लोग के हाजरी चढ़ाये।
~काम म थोकुन भी जोर नी रहे
बस जमीन ल छोले सब,
सकेरहे भी घर आथन कही के
भेद कोनो नई खोले तब।
~पंच मन मिलके पैसा उकारथे
बिना कमाये सब मजदूर के,
मात्रा दू सौ दे के सब पैसा ले लै
नी कमाय कारन कसूर के।
~पैसा कमाए बर कर्मचारी मन
दिन-दिन होवत हे बेईमान,
गरीब मजदूर के सुनोय्या नईए
सबके बाढ़त हे अभिमान।
*कवि/ लेखक*
*विजय कुमार कोसले*
*नाचनपाली, सारंगढ़*
*छत्तीसगढ़ ।*
*मो.- 6267875476*
जागो ग्रामीण जागो।
जागो मजदूर जागो।